भोर का रूप
उदित सूर्य की
स्वर्णिम किरणें दीप्ति मान हैं ।
और गुनगुनी
धूप सुशोभित आसमान हैं ।।
भोर हुई बीती
रजनी सब तारे डूबे ।
सप्त रंग के
सुमन लिए सुंदर मंसूबे ।।
गुंजित हुए
पंछियों के प्रिय मधुर गान हैं ।
और गुनगुनी
धूप सुशोभित आसमान हैं ।।
शीतल पवन
बही मृदु मंथर धीरे धीरे ।
चली वनचरों की
टोली सरिता के तीरे ।।
यही प्रकृति की
सृजन शीलता की उड़ान हैं ।
और गुनगुनी
धूप सुशोभित आसमान हैं ।।
– सतीश शर्मा, नरसिंहपुर
(मध्यप्रदेश)