भोपाल गैस काण्ड
दिसंबर का महीना
ठंडी – चांदनी रात
जिसके आगोश में
सो रहा था भोपाल।
अपना काम निपटा कर
सो रहा था हर इंसान।
पर अनजान था वह कि
आने वाला है काल।
नहीं जानता था कोई भी
नहीं मिलेगा उन्हें नीला आसमान
क्योंकि सूंघने वाले था वो
अपनी ही मौत का सामान।
आँधी रात होते ही
कोहराम मच गया भोपाल में
क्योंकि फस गया था वो
ज़हरीली गैस के जाल में।
अचानक ही तड़प उठा
वहां का बूढ़ा, बच्चा और जवान।
और करने लगा वो कोशिश
बचाने के लिए अपनी जान।
पर हर बार के साथ ही
खो रहा था वह अपनी साँस को।
यह सब मंजर देखकर
दहल गया था हिंदुस्तान उस रात को ।
जब खून के आँसू बहा रहा था
भोपाल का हर इंसान उस रात को।
यह नजारा देख कर
रूह कांप उठी होगी इंसानियत की।
जब माँग रहा होगा हर इंसान
भीख अपनी सलामती की।
पढ़ाई – लिखाई और दवाई
कुछ काम नहीं आई उस रात को।
जब तड़प उठा सारा भोपाल
हर एक साँस को।
– श्रीयांश गुप्ता