भोज काल की गौरव
भोज काल के गौरव की, मैं जीवंत कहानी
शैल शिखर से भरी भरी, भरा लबालब पानी
किसी भी हिल से देखो मुझको, मैं झील हूं बड़ी सुहानी
मेरा शिल्प बयां करता है, भोज की अकथ कहानी
राज सी रंगत है मेरी, और नवाबी शान है
कौमी एकता की, पहचान बेमिसाल है
मैं पावन गंगा जमुना जल, निर्मल नीर नर्मदा हूं
मैं पवित्र आबे जमजम हूं, पूजा और अजान हूं
हरी-भरी वादी है मेरी, मेरी अदा निराली
खुशमिजाज भोपाल है मेरा, खुशमिजाज भोपाली
नहीं प्रदूषित करना झीलें, करना तुम रखवाली