भोजपुरी “ग़जल”
#भोजपुरी ग़जल#
“ग़ज़ल”
दूर कइसन हो गइल बा आदमी से आदमी ।
खो गईल बा जिंदगी में आदमी के सादगी।
जिंदगी के राह मे शिकवा शिकायत ढेर बा ,
छोड़ के शिकवा शिकायत बस करीं जा वंदगी।
प्रेम से कोई कभी नइखे मिलावत आँख भी,
एह से तनहाइ में अब पड़ गइल बा जिंदगी ।
बीत गइलस ऊ जमाना अब न लौटी फेर से,
खुश रहीं जा प्रेम से छोड़ सब संजीदगी ।
अब्र नफरत के घना बा देख के चलीं सभे,
बस चमन मे बा यहाँ पर तीरगी हीं तीरगी ।
बाग उपवन फूल सब मुरझा रहल बा धूप से।
सूख गइले ताल नदिया कुछ कहाँ बा ताजगी।
डर अभी ले बा न निकली भीड़ में बिन मास्क के,
दौर बा अब दूर से हीं राखी मन में आशिकी ।
प्रमिला श्री ‘तिवारी’