भैया आतीं याद पुरानी वो बातें
भैया आती याद पुरानी वो बातें
बचपन में करते थे बड़ी खुराफातें
झगड़े कितने होते रोज हमारे थे
मगर अलग रहकर भी नहीं गुजारे थे
प्यारे बड़े रूठने और मनाने थे
बचपन के दिन सच में बहुत सुहाने थे
अब तो हो भी पाती नहीं मुलाकातें
भैया आती याद पुरानी वो बातें
राखी पर क्या धूम धड़ाका मचता था
नेग मुझे कुछ देना तुम्हें अखरता था
पहले मैं लड़ लड़ कर पैसे लेती थी
उपहार मगर लाकर तुमको ही देती थी
थी कितनी अनमोल हमारी सौगातें
भैया आती याद पुरानी वो बातें
नई नई कागज़ की नाव बनाते थे
भीग भीग कर आँगन में तैराते थे
मम्मी के कदमों की आहट पाते थे
झट दरवाजे के पीछे छुप जाते थे
ढूँढे अब भी आँखें वो ही बरसातें
भैया आती याद पुरानी वो बातें
खुद तो मुझ पर कितना रोब जमाते थे
मेरी खातिर पर सबसे लड़ जाते थे
देर रात तक जब हम दोनों पढ़ते थे
भूख लगे तो पाक कला भी करते थे
जाग जाग यूँ काटी हैं कितनी रातें
भैया आती याद पुरानी वो बातें
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद
06-08-2018