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14 May 2020 · 1 min read

भेंट चढा बचपन

*** खोता बचपन ****
******************

जीवन का स्वर्णिम काल
होता प्यारा बाल्य काल

बचपन की बातें निराली
सूरत होती भोली भाली

जो होती है मन में भात
वहीं करते हैंं बच्चे बात

माँ बाप का मिले दुलार
बाल्य की खुराक प्यार

समय में आया बदलाव
नरनारी करें नौकरी चाव

पति पत्नी करें रोजगार
करते हैं अर्जन वे पैगार

देनी पड़ती बड़ी कुर्बानी
सुनिए बच्चों की जुबानी

हो जाते माँ बाप लाचार
बच्चों को ना मिले प्यार

बेशक पैसे हो जाए ढ़ेर
बचपन भी हो जाए ढ़ेर

माता – पिता की नौकरी
ना हो बच्चो की चौकरी

लेना पड़ता पर सहारा
तब जा होता घर गुजारा

ढूँढते घर के लिए है बाई
बाल सेवा साफ सफाई

करें वो घरेलू कार्यवाही
शिशु संभाल की भरपाई

दादा – दादी,नाना – नानी
बच्चों के बने दिल जानी

तन मन.से करते संभाल
बन जाते हैं उनकी ढाल

पर लाख कोशिशे सारी
हो जाए अनुत्तीर्ण सारी

सुन न पाए तोतली बोली
माँ बाप बन के हमजोली

जब पूछें कहाँ माँ तुम्हारी
कहें गई हैं ड्यूटी सरकारी

सुन रहे नहीं कुछ है पल्ले
धरे रह जाएंगे पैसे धैल्ले

आता बचपन पर है तरस
ना हो माँ बाप प्यार बरस

बाल बचपन या खुशहाली
मिलेगी एक ही भरी थाली

जीवन की है यही अड़चन
भेंट चढ़ गया बाल बचपन

कोई अपनाइए हथियार
मिले माता पिता का प्यार

देखी जाती नही है शक्ल
काम करती नहीं है अक्ल

सुखविंद्र शायद ये जुर्माना
बच्चे समझेंगे उन्हें बैगाना

सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

Language: Hindi
3 Likes · 204 Views
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