*भॅंवर के बीच में भी हम, प्रबल आशा सॅंजोए हैं (हिंदी गजल)*
भॅंवर के बीच में भी हम, प्रबल आशा सॅंजोए हैं (हिंदी गजल)
_________________________
1)
भॅंवर के बीच में भी हम, प्रबल आशा सॅंजोए हैं
नहीं हम धैर्य-साहस को, कभी किंचित भी खोए हैं
2)
उगा है सूर्य फिर देखो, गगन का चीर ॲंंधियारा
मिली है जीत उनको ही, निशा में जो न रोए हैं
3)
रहे कब पेड़ पर पत्ते, जो आया दौर पतझड़ का
मगर यह पेड़ ही हैं जो, भरे उम्मीद सोए हैं
4)
परिश्रम का इसी कारण, नहीं मिलता उचित फल है
पुराने जन्म में जाने, कहॉं क्या बीज बोए हैं
5)
समय ही दर्द देता है, समय ही दे रहा राहत
समय की पुष्प-मालाऍं, कई ऋतुऍं पिरोए हैं
6)
जगत में वृद्ध के दुख को, सभी जन देखते हैं पर
वही हैं धन्य जब देखा, नयन अपने भिगोए हैं
—————————————-
रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451