भूसा
हर बार चुप नहीं रहा जाता,
अब मुंह में भूसा घुसा दो,
वही भूसा जो तुम्हारे दिमाग में,
तुम्हारे मन में, देह में भरा पड़ा है
इतने हल्के होते जा रहे हो
पता है क्यों, अब मांस रक्त सब भूसा हो रहा है
एक दिन ट्राॅलियों में भरकर,
मवेशियों के आगे फेंक दिए जाओगे
वो भी सूंघ कर चले जाएंगे,
ऐसा सूखा निर्जीव, मुंह नहीं लगाएंगे
शरीर की खुजली मिटाने को,
तुम्हें रगड़ती, तुम पर लोटती
उठ कर, गोबर फैलाते चले जायेंगे,
हरी -सजीव ,जमीन से लगी घासों में
तुम कुछ हवा में उड़ोगे,
कुछ गोबर में दबे रहोगे,
कितने अथाह, बेमतलब से जगह घेरे हो
यह देख जला दिए जाओगे,
आग, धुंआ, राख, फिर निरर्थक से मर जाओगे।