भूल
उनसे अपनी भूल
सुधारी भी न गई।
कचड़े से भरी कोठी
बुहारी भी न गई ।।
मजदूर ले फरियाद
को मीलों चले गए।
पर उनसे उनकी टीस
गुहारी भी न गई।।
बीहड़ वनों में उसकी
सदा गूंजती रही ।
इनसे दुआ की बात
पुकारी भी न गई ।।
बच्चों की हर एक जिद
को पूरा नहीं करते ।
पर उनसे एक जिद थी
जो टारी भी न गई ।।