भूल नहीं पाता
कोई वहशी दरिंदा नहीं
माना मैं भी फरिश्ता नहीं,
एक अदना–सा इंसान हूं मैं
अच्छा बुरा कुछ समझता नहीं,
खुद से मुझको है नाराजगी
पर तुमसे कोई शिकायत नहीं,
पास आए तुम कहां और
दूर भी तुम हुए नहीं,
ख्वाब है, दर्द है, आस है
देख लो मैं अकेला नहीं,
यह भी हुनर सीखा तुम्हीं से
बेवजह मुस्कुराता नहीं,
यूं तो भुलक्कड़ बहुत है “अभि”
बस तुम्हें भूल पाता नहीं ।।
© अभिषेक पाण्डेय अभि