भूल थी कोई
मुद्दत के बाद ही सही थोड़ी खुशी हाथ आई थी ,
बेचारा भूल गया कि बदकिस्मती पीछे ही खड़ी है।
जाने क्यों उस पर इतना गुमान हो गया ,
वो उसका ऐतबार था या भूल थी कोई ।
कोई काम न आया अशफ़ाक़ उनका ,
असीफ़ होना ही जो मुकद्दर में लिखा था ।
वो अतवार उसका दिल ए नागवार था ,
अख़लाक़ ही था कि वो कुछ न कह सका ।
अशोक सोनी
भिलाई ।