भूल जाता हूँ!
यह गुज़रा वक़्त न होता मयस्सर भूल जाता हूँ!
नहीं हो पास तुम मेरे यह अक्सर भूल जाता हूँ!!
लो अब वह आदते अपनी सहेजना सीख ली हमने!
कि जिसको कहती रहती थी कि रखकर भूल जाता हूँ!!
किसी का रोकना और टोकना सुनता नहीं हूँ अब!
वो बातें जो चिढ़ाती थी सब हँसकर भूल जाता हूँ!!
नहीं रोता कसम से अब जो होता दर्द भी मुझको!
तेरे दिए ज़ख्म से फ़ीका समझकर भूल जाता हूँ!!
किसी आँखों के कोरो से झलक भी जाये गर बूंदे!
है तिनका ये बड़ा गुस्ताख़ कहकर भूल जाता हूँ!!
इस बार सोचा था फिर से कुछ बाते वही कर लूँ!
मगर किस बात का था ज़्यादा असर भूल जाता हूँ!!
हाँ कुछ बातें नही है चाहता जिसे भूलना “चिद्रूप”!
उन्ही बातों को लिखता पाती में पर भूल जाता हूँ!!
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित १४/०२/२०२२)