भूल जाओ इस चमन में…
भूल जाओ इस चमन में…
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भूल जाओ इस चमन में…
इंसाफ की फरियाद करना ।
ग़र दौलत है तुम्हें तो ,
न्याय की घंटी बजाना ।
ब्रिटिशराज कानून अभी तक,
ढाल बनकर यूँ पड़ा है ।
लग रहा डलहौजी की सेना ,
मार्ग में अब भी खड़ा है ।
गोरों का लिखा सब कानून ,
परछाईं बनकर ही खड़ा है ।
देख लो उलटकर हर कानून ,
मुवक्किलों को राहत कहाँ है ।
न्याय की कचहरी सजी है ,
फैसले की अवधि नहीं है ।
मेहनतकश इसमें उलझकर .
मुज़रिमो के संग ही ढली है।
अपील और दलील में उलझकर,
जिंदगी की उम्र गुजरती ।
किश्मत जब उनकी बिगड़ती ,
अदालत का है रुख करती ।
काले परिधान में सजकर ,
सत्य की है दलील रखते ।
तौलकर आदमी की दौलत ,
मुकदमे का पक्ष रखते ।
जमीन जायदाद के मुकदमे ,
हैरान कर देते यहां पर ।
तारीख पे तारीख होती ,
फ़ासले जीवन के घटते ।
इल्तजा यदि है जेहन में
तो गुजारिश रब से ही करना,
जो सुने फरियाद जल्दी ,
आरज़ू भी उनसे करना ।
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – १९ /१२ / २०२१
शुक्ल पक्ष , पूर्णिमा , रविवार
विक्रम संवत २०७८
मोबाइल न. – 8757227201