भूल गया
🙏🙏सादर प्रणाम🙏🙏
दिनाँक:- १७/०५/२०२४
मैं तो अपने ही जेहन की जात भूल गया
कुछ अरसे से मैं अपनी औकात भूल गया
आइना देखने को रहता था कितना तत्पर
वो व्याकुल मन के सब जज़्बात भूल गया
देखते ही देखते पौधे दरख्तों में तब्दील
बीज से अपने रिश्ते की शुरुआत भूल गया
कलेजे की मासूमियत कवित्त कहलाई मेरी
अफ़सोस मगर की मैं कलम दवात भूल गया
अपने भावों को उकेरता रहा हूँ रेगिस्तान पर
बचपन की काली बदली की बरसात भूल गया
कितनी ही बार दर्द से चित्कार उठा है दिल मेरा
गैरों को छोड़ो मैं तो अपनों के आघात भूल गया
जिस पर बैठ कर मैं फ़लक नाप आया हूँ
वो शोहरत देने वाली अपनी ही बिसात भूल गया
शिकवे शिकायतें करता रहा तुझसे पल पल
तेरी रहमत से प्राप्त हर वो सौगात भूल गया
आज फिर से लौट आई है इन आँखों की चमक
जिसे कहना था आवश्यक वही बात भूल गया
मैं तो अपने ही जेहन की जात भूल गया
कुछ अरसे से मैं अपनी औकात भूल गया
भवानी सिंह “भूधर”
बड़नगर, जयपुर