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5 Mar 2018 · 2 min read

भूल गए !

भूल गए वो छप्पर टाट
जब से हो गए सत्तर ठाट
भूल गए वो प्यार की बाते
पा वाट्सअप फेसबुक सौगाते!

भूल गए वो माँ का आँचल
साथ बैठकर बीते वो पल
भूल गए घर का संवाद
अब फेसबुक पर वाद विवाद!

भूल गए हम मान बड़ो का
भूल गए अहसान बड़ों का
भूल गए हम सेवाभाव
भूल गए सब अपने चाव!

भूल गए साँसों के वे क्षण
अब है खाते रोज़ प्रदुषण
भूल गए हम खेत बगीचे
जब से लगे धंधे के पीछे!

भूल गए ताज़ी तरकारी
अब मैगी खाना लाचारी
भूल गए सब दूध दही क्यों
पिज़्ज़ा बर्गर लगे सही क्यों?

भूल गए वो ठंडी छाया
मिटटी में पानी छिड़काया
भूल गए हम कुल्हड़ मटके
अब केवल विज्ञान में अटके!

भूल गए नुक्कड़ पर जमना
जब से जेब हुई है अदना
भूल गए हम खुलकर हँसना
जब से सीखा गृहस्थ में फसना!

भूल गए कही गप्प मारना
फसकर भी फसते को तारना
भूल गए वो जिगरी यारी
जबसे देखी दुनियादारी !

भूल गए हम आहे भरना
प्रेम की ख़ातिर पल-पल मरना
भूल गए कहाँ प्रेम मैं वारूँ
जबसे जिस्म हुआ बाज़ारूँ!

भूल गए खुद के लिए जीना
जबसे भूख ने चैन है छीना
भूल गए हम तख़्त सिरहाना
जबसे नींद का नहीं ठिकाना!

भूल गए हम रिश्ते निभाना
अब तो स्वार्थ का आना जाना
भूल गए सुख-दुख को बांटना
जबसे सीखा गलती छांटना!

भूल गए आग्रह पर अड़ना
ना आये तो पैर पकड़ना
भूल गए आतिथ्य प्रभावी
जब से स्वार्थ हुआ है हावी!

भूल गए हम खुद ही खुद को
भूल गए अपनी सुध-बुध को
भूल गए अपना सुख चैन
जबसे जेब हुई बेचैन !

———————————————————————
– ©नीरज चौहान की कलम से…
(‘काव्यकर्म’ से अनवरत)
लिखित : 17-11-2017

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 540 Views
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