भूल गए..!
मुहब्बत में इस कदर
माज़ूर हो गए
कि इश्क़ करने का
हुनर खो गए
हथेलियों में लिखते रहे प्रेम
और हृदय में बसना भूल गए….
तुम्हें खुश करने का हुनर
सीखते रहे सारी उमर
और ख़ुद की खुशी भूल गए
तुम्हें सँवारते रहे
और विचार बिखर गए…..
आपदा में तुम्हें राहत दी
तुम अवसर खोजने में लग गए
तुम्हारे क्लांत मन को
शीतल करते रहे
और गर्म रेगिस्तान में उतर गए…
आशा का दीपक जलाकर
तुम्हें उजाला देते रहे
और विकल मन की
इच्छाएं भूलते गए…..
….. डा.रंजना वर्मा ‘रैन’
गोरखपुर