भूल गए हम लहू बहाने वालों को
किसी ने घर छोड़ा किसी ने नौकरी छोड़ दी
इंसाफ़ के लिए लड़कर कितनों ने कमर तोड़ ली
वो बता रहे हैं जिसे भीख में मिली आज़ादी
उस भीख़ ने हमसे हमारी गुलामी छीन ली
नफरत करो मगर नफरत करने वालों से
उनको सजा क्या मिले जिन्होंने माफ़ी ही मांग ली
नंगे हैं ख़ुद मगर बच्चों को कपड़े पहनाएंगे
लाठी लेकर बापू ने मगर दिल में यूँ ठान ली
कौन कहाँ से आ जाता था कितना लहू बहा जाता था
बदल दिया इतिहास और हमने भी इनकी मान ली।
~मुहम्मद आसिफ अली