भूले से हमने उनसे
भूले से हमने उनसे
आंखें जो चार कर लीं
तब से ही जान-ए-जानां,
पीछे हमारे पड़ गये
हमने ना सोचा था कभी,
यह दिल्लगी होती है क्या,
पर देख कर उनको लगा,
दिल में हमारे बस गए
अब प्यार में तन्हाईयां,
सोने नहीं देतीं हमें,
जब से वो इन नयनों के,
सपने सुहाने बन गए,
यह जिंदगी इतनी हंसी,
पहले न लगती थी कभी,
अब हर तरफ सुंदर नजारे,
उनकी नजर से हो गए,
सोचकर भी क्या करेंगे,
बेखुदी होती है क्या,
अब तो बस वो ही हमारे,
और हम उनके, दीवाने हो गए,
भूले से हमने उनसे,
आंखें जो चार कर लीं…
तब से ही जान-ए-जानां
पीछे हमारे पड़ गए।
– ✍️सुनील सुमन