भूले नहीं भुलाती, मेरी मातृभूमि कश्मीर
रोम रोम है दर्द का दरिया, अंतहीन है पीर
भूले नहीं भुलाती, मेरी मातृभूमि कश्मीर
अपने घर से हुए पराए, पीड़ा दिल की कही न जाए
घर दर दैर जमीन जड़ों की, याद भुला न पाए
मेरी जन्मभूमि जन्नत सी,जिसकी नहीं नज़ीर
रोम रोम है दर्द का दरिया, अंतहीन है पीर
भूले नहीं भुलाती, मेरी मातृभूमि कश्मीर
बचपन की वो याद पुरानी,दादा दादी नाना नानी
हरी भरी वादियों की रौनक, झरने और झीलों का पानी
दूर दूर तक बर्फ की चादर, मित्र मंडली की शैतानी
तीज त्यौहार समृद्ध संस्कृति, और गीतों की रवानी
नृत्य और संगीत कला की,वसी हुई तस्वीर
भूले नहीं भुलाती, मेरी मातृभूमि कश्मीर
रोम रोम है दर्द का दरिया, अंतहीन है पीर
वो मिट्टी की खुशबू,आंगन और वो गलियां
आते जाते दुआ सलाम, मीठी-मीठी बतियां
केशर की क्यारी और फूलों की कलियां
शिकारे सैर-सपाटे और चांदनी रतियां
यादें अंतस आते ही, मन हो जाए अधीर
भूले नहीं भुलाती, मेरी मातृभूमि कश्मीर
रोम रोम है दर्द का दरिया, अंतहीन है पीर
वतन से दूर हो गए,घर भी खाख हो गए
मठ मंदिर और देवालय, खंडहरों में खो गए
तीन दशक गुजर गए, स्वप्न भी बिखर गए
मात-पिता स्वजन मेरे,सब शिकार हो गए
आंसुओं में डूबे हुए, क्या से हम हो गए
क्या खता थी हमारी, क्यों किया हमको दर-बदर
भूले नहीं भुलाती, मेरी मातृभूमि कश्मीर
रोम रोम है दर्द का दरिया, अंतहीन है पीर
ज्ञान लेते रहे ज्ञान देते रहे,समृद्ध घाटी बनाते रहे
भाई चारा हम सभी से निभाते रहे, मजहब नहीं कभी आड़े रहे
अमन प्रेम के हम पुजारी रहे, ज्ञान सदकर्म गीत गाते रहे
क्यों पंडितों पर बरपाया कहर, भटकने को मजबूर हुए दर-बदर
भूले नहीं भुलाती, मेरी मातृभूमि कश्मीर
रोम रोम है दर्द का दरिया, अंतहीन है पीर
हम मरते रहे लोग चुपचाप थे, साथ देने को तब नहीं आप थे
धिर गए वहशी दरिंदों में हम, बहिन वेटी से होते अनाचार थे
क्या बताएं हमारे क्या हालात थे,भगाए गए हम बालात थे
न साधन सुरक्षा, न हथियार थे, घिरे हुए खतरों में परिवार थे
मर मर कर जीते कर थे वसर,मारे दहशत के टूटा हमारा सबर
रोम रोम है दर्द का दरिया, अंतहीन है पीर
भूले नहीं भुलाती, मेरी मातृभूमि कश्मीर
दरदर की ठोकर ताने मिले,देश में ही शरणार्थी जाने, जाने लगे
मूल निवासी थे हम बाहर हुए, लोग बाहर से आकर रहने लगे
लोग तानों में डरपोक कहने लगे, क्या हम अपने मन से भगे?
अंतिम पड़ाव में आशा यही,मिले माटी की खुशबू इच्छा यही
लौटा दो वादी दुआ है यही, बात दिल की जुबां से तुमको कही
मेरी बुनियाद में ऐंसा घोला जहर,भटकते रहे हम शहर दर शहर
बुनियाद घर पर लगी है नजर, कभी देखूंगा वादी वो मेरा शहर
रोम रोम है दर्द का दरिया, अंतहीन है पीर
कोई तो लौटा दो, मेरा प्यारा सा कश्मीर
सुरेश कुमार चतुर्वेदी