भूलें नहीं नववर्ष
भूलें नहीं नववर्ष हमारा,
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को आता है।
सृष्टि का यह जन्म दिवस,
सत्य ,सनातन , शाश्वत है।
वह असीम संस्कृति हमारी,
जिसमें सभी समाहित है।
अध्यात्मिक व संस्कृति पोषक,
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा आराधक है।
साधना, सेवा, भक्ति का,
उद्धोषक, परिचायक है।
ना मिटा कभी ना मिट सकता,
हिन्दू नववर्ष वैज्ञानिक है।
सबको समाहित करने का,
अंनत कोटि विस्तारक है।
प्रकृति से पालित होकर भी,
हर आत्मा में बिराजित है।
हां इतना यदि संयोग बने,
कलेंडर का प्रारूप बदले।
शासन भी लेखेजोखों में,
वर्ष का मापदंड लिखले।
तारीख भले ही अंग्रेजी हो,
कलेंडर प्रतिपदा को ही बदले।
भावी पीढ़ी का ज्ञान बढ़े,
प्राचीन इतिहास हमारा है।
ऐतराज नहीं ईस्वी सन् से,
विश्व मंच पर छाया है।
पर अपने स्वाभिमान की खातिर,
हिन्दू नववर्ष अधिक प्यारा है।
किसी भी संस्कृति का हो नववर्ष,
जश्न तो अच्छा होता है।
पर हर देश के जश्नों का ,
अलग-अलग सलीका होता है।
क्या अभी गुलामी की मानसिकता,
भारत से निकल नहीं पाई है।
मौज-मस्ती के फैशन में,
सांस्कृतिक मर्यादा भुलाई है।
ईस्वी नववर्ष के राग-रंग में,
भारतीयता नजर नहीं आयी है।
अफसोस!किसे कहें हम,
अपनों से ही खतरा ज्यादा है।
(राजेश कुमार कौरव”सुमित्रा”)