भूत लगी या देवता आई?
इक दिन जाणू छौ मीं भाई,
तब एक मनखी जोर से चिल्लाई!
आवाज सुणीक मैं बौखलाई,
पुछी मैंन क्या ह्वै भाई,!
क्ंयाक कि खातीर तू ऐनू बरम्नडाई।
मेरी बात तैन न धराई,
पर अपनी मुण्डली कूब झम्डाई,!
बदन भी अपणु सारू हिलाई,
फिर लिनेन तेन अंगडाई,!
शरीर तैकू कनू कम् कंम्पाई ।
मजमां लगणू शूरु ह्वै ग्याई,
भिण्डी-भिण्डी भौण का तख मनखी आई,!
एकन ब्वाल कुछ नी छा भाई,
हैकन ब्वाल ऐनू नी छ. भाई,!
जरुर यो किसै छःघबराई,
इतना मा एक कजाण तख आई,!
तीह्न ब्वाली या उपरी माया छ भाई,
झाडू-ताडू करा उपाइ ।
मैं भी होंयू थयो भौचंक्कू,
मैंन तैतें फिर पुछण लाइ,!
क्या ह्वै त्वै तैं- किलै नी बताइ,?
बोल म्यारा दिदा-ब्वाल मेरा भाई,
भूत लगी या देवता आई ।।