भूत अउर सोखा
सोखा जब जब आवेला तऽ टाने बीयर, वाइन,
झुठहूँ रोज उपाटेला ऊ चुरइल भूतिन डाइन।
निमनो मनई झूमे लागे कूदे अउरी नाँचे,
जब सोखा गाँवे में आके अंतर मंतर बाँचे।
पहिले भूत जगावे खातिर माँगेला कुछ बीखो,
उल्लू अगर बनावे के बा ओकरा से सब सीखो।
बोलेला ऊ पूजा करेबि जा के हम शमशाने,
रुपया पइसा लगी चढ़ावा भूत न अइसे माने।
माँगेला बकरा भा मुर्गा, दारू, इंग्लिश, देसी,
कहेला बा भूत खवइया खाई ना तऽ लेसी।
कहेला सोना आ चानी बा धरती के नीचे,
बिहने भूत जगावेक परी तीन डगर के बीचे।
लइका नइखे होत अगर तऽ ओकर अलग तरीका,
निफिक्किर तू हो जा भाई दे दऽ हमके ठीका।
ये दुनिया में बाटे भाई जेतना रोग बिमारी,
सोखवा कहे हमरा से ऊ कवन रोग ना हारी।
लोगवा जानेला ठग हवे मौका पा के ठऽगी,
तबो काहें करत रहेला हाँथ जोड़ पँवलऽगी।
भरम जाल में पड़ला से तऽ आवे बस बरबादी,
झाड़ फूँक के भइल जाता लोगवा बाकिर आदी।
मनोरोग के दुनिया में बा चलऽल बहुत दवाई,
सोखा लगवा जइबऽ तऽ ऊ नुकसाने पहुँचाई।
कवनो रोग रही तहरा पर चढ़ऽल भूत बताई,
अगल बगल के दिहल कहि के झगरा रोज फसाई।
परबऽ जे घनचक्कर में अइसन तहके समझाई,
रुपिया पइसा ले ली अउरी जानो ले के जाई।
हाकिन, डाकिन, हठी, मर्ही, भूत, पिचास, बता के,
हाथी के जस बड़हन कऽ दी छोटहन रोग बढ़ा के।
ये ढोंगिन के चक्कर में जनि आके घर बिलवावऽ,
भूत प्रेत ना कुछऊ होला सबके इहे बतावऽ।
वैज्ञानिक युग बाटे आइल पाखण्डिन के त्यागऽ,
अंधकार के पीछे छोड़ऽ आगे आगे भागऽ।
– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 07/11/2022