भूत नाथ
दिलों में गर दरारें पड़ गई हो तो बचा क्या रहा
खंडहरों की मरम्मत तो नहीं होती न “भूत नाथ”
***
कितनी चिकनी और तंग गलियां थी दिलों की
आना तो आसान रहा निकलने में टूटे पैर हांथ
***
उसकी यादों के गुलिस्तां में बसर जिंदगी हो
इजाज़त हो तो संभलूं और चल दूं खाली हांथ
~ सिद्धार्थ