भूख
देखो जमीं पर कुछ खाने को
नहीं बचा है
बचा है तो ये आसमाँ
तुम किधर से खाओगे
शुरू में ही बता दो
सितारे पहले से बाँट लेते हैं
तुम्हारी मक्कारी अब देखी नहीं जाती
वो पेड़ तुमने ऊपर से खाना शुरू किया था
डालें कम थी तो
जड़ों पर भी हक़ जमाया था तुमने
फिर बकरी, गाय, शूकर खा कर
पेट भरा था हमने
उस तालाब को ऐसा पिया
मछली निगलने के लिए
पानी ही नहीं बचा मेरे पास
मैं ही जानता हूँ
उस दिन को मैंने कैसे जिया
जब बग़ल के खेत की बारी आयी
तो झपट कर सारी फसल खा गए तुम
किसान की बची हड्डियाँ खाकर
किस कदर रात गुज़ारी है मैंने
आधी रात को बच्चा खाकर
भूख बुझानी पड़ी थी मुझे
कुआँ पीकर सोया था
और तीन दिन पहले
उस औरत के ज़ेवर को खाया था तुमने
अरे एक का खाया या चार का
मैं तो भूखा ही रहा
बूढ़ी झोंपड़ी को ही खाना पड़ा आख़िर
शहर की ऊँची मीनारों में
क़ैद साँसो को
क़तरा क़तरा पिया था हमने
सारा ज़हर धुएँ पर मढ़ दिया
सबसे स्वादिष्ट तो नैतिकता थी
कम ही बची थी
वो भी नोच खसोट कर खाई थी तुमने
सारी मर्यादा भी तुम्हीं चट कर गए थे
बची हुई प्यार और सदभाव की चींटियाँ
मेरे हिस्से आयी थी
पहले जंगल खाए फिर तालाब
फिर गाँव फ़िर शहर
फिर ज़मीर, फ़िर इंसान
कितना कुछ खाया है हमने
चलो आसमाँ खाना शुरू करें
इसके बाद
तुम मुझे खा लेना
और
मैं तुम्हें
@संदीप