भूख
भूख
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भूख से बिलबिलाता तन ,
धूल धूसरित उलझे बाल ,
झुर्रियों से भरा मुरझाया चेहरा ,
कपाल पर लिखा है जो ,
भूख से रहना प्रतिदिन बेहाल ।
तक़दीर का कसूर कहूँ ,
या कहूँ देश का सूरत-ए-हाल ।
जानता कोई नहीं इसका हल ,
पर है यह पापी पेट का सवाल।
जन्म लेना धरा पर ,
अपने वश में तो नहीं ,
फिर क्यों नहीं है ?
भोजन पर सबका अधिकार ।
गरीबी का कहर है ,
आज के समाज का जहर ।
भूख से मजबूर होकर ,
कचरे के डिब्बे में खोजता ,
जूठे अन्न के दानों को मोहताज ,
ये है आज का मशीनी युग व समाज ।
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि –०७ /११/२०२२
कार्तिक,शुक्ल पक्ष,चतुर्दशी ,सोमवार
विक्रम संवत २०७९
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