भूख
भूख
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भूख है
पेट की तड़पन का
शक्ति नहीं
चल पाता भी नहीं
मुरझा – मुरझा कर
गिर पड़ता हूँ
भटक – भटक
राहों में
एक आशाएं थीं
वो भी नहीं
जिसे चाहता मैं
मिलों कोसों दूर
कोई तो न हैं
रोटी की टुकड़ी
कि है तलाश
इन बाजारों को देख
जी मचल जाता है
इनकी चमक देख
न जाने क्या !
सब तो पैसों की
टंकार
नहीं तो
अपना भी कंगाल
देह तो
दिख रहे जैसे
अस्थिपंजर-सी
हो रहे बिकने के
नाम चंद अंग में
फिर कहो तो
ये तो भव का
है विकराल
पेट तो चिपट गई
क्यों ?
भूख है
अन्न तो नहीं
बांध लूं कफ़न से
कहो तो
मिट जाएंगी
भूख, दर्द, सूजन
उदर के
कमर पेट की
दिख रही है
एक पतली सी रेखाएं
देखो तो
क्या कमजोर है ?
नहीं रे
वो भूखा है।
दे दो कुछ
भोजन को
नहीं
हम क्यों दे
तू ही दे दो न
हराशंख….
बोलने आता है।
#VarunSinghGautam