भूख , रोटी और आवाज
***कविता …..
…………भूख , रोटी और आवाज
दरवाजे पर खडा भिखारी
बार..बार हर बार बस एक ही वाक्य दोहराये जा रहा था,
ए माईं कुछ खानें को दे दे
जीजमान कुछ खानें को दे दे
उसकी ये खुश्क तेज आवाज
चीर रही थी ………धनिया का दिल
और भीगो रही थी ……पारों की आँखे!
क्योंकि …. रात बच्चे सोये थे भूखे
और आज सुबह भी जैसे भूख ही लेकर आयी थी उसके द्वारे,
घर के अंदर और घर के बाहर एक ही चीज समान थी
और वो थी………भूख
भूख और सिर्फ भूख !
फर्क था तो बस ये कि …./.एक मौन थी और दूसरी में आवाज थी,
दोनों ही लाचार थे
एक दूजे से अन्जान थे
बाहर वाला ये नही जानता था कि …….
अन्दर वाला उससे भी बुरी हालत में है
बस वो बेचारा बेवश चिल्ला भी नही सकता था !
दर्द बाहर भी था
दर्द अन्दर भी था
भूख इधर भी थी
भूख उधर भी थी
लाचारी इधर भी थी
बेगारी उधर भी थी
ये कुछ और नही थी
बस गरीबी थी
गरीबी थी
……और ../…
गरीबी थी !!
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मूल कवि (बैखोफ शायर)
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डाँ. नरेश कुमार “सागर”