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15 Jun 2023 · 1 min read

भूखे की बेबसी

हर बार
भूखे ही कुचले जाते हैं,
बने हुए है,
समाज में फर्श (जमीं)
सबको असुविधा से बचाते हैं,
फिर भी हर बार,
भूखे ही कुचले जाते हैं,
.
खुद बन सीढियां,
सबको शीर्ष पर बिठाते हैं,
शीर्षस्थ खा गये,
मिल बाँट कर,
उन तक सिर्फ़,
पैकेट पहुंचाते हैं,
हर बार पीड़ा शिअद करते है,

जो मिले,
उसमें भी खुश रहते हैं,
पहला भोग,
देव को,
फिर,
मिल बाँट कर,
खाते हैं,

नमन कर,
फर्श का स्पर्श
प्रभु के *आगोश में,
सो जाते हैं,

हर बार भूखे ही कुचले जाते हैं,
हिम्मत कर प्रचम लहराते हैं,
फिर भी हंस देखो !
भूख के राग,
नहीं वो गाते हैं,

स्वरचित दोहा :-
बुरा बुरा सब कहे, बुराई देखे न कोई,
जो बुराई को देखे, बुरा बचे न कोई .

~ हंस महेन्द्र सिंह ~

Language: Hindi
198 Views
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