भूकंप कंपन
**** भूकंप-कंपन *****
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सपनों के सागर में खोया,
था मैं गहरी नींद में सोया।
अचानक सारी धरती घूमी,
हिल गया सोया का सोया।
चारपाई संग नभ भी घूमा,
आँखें खोली ये क्या होया।
तन-मन में भय था छाया,
तीव्र भूकंप कंपन होया।
एक भी शब्द नहीं निकले,
समझ न पाऊं क्या होया।
पल-भर में पलटी दुनिया,
पलटा मैं भी साथ मे रोया।
आँखों मे सारे तारे चमके,
गोल-गोल गोली सा गोया।
मनसीरत सूली पर लटका,
मौत का भार पल में ढोया।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)