भुलौं टक लगै कि सूणा तुम अभिमान त नि करा भै।
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उठा जागा, खेला कूदा तुम
नाचा, गावा, ज्वान हुयां तुम
तुम करा भंडै उत्थान
बनावा अपणु बड़ो नाम
भुलौं टक लगै कि सूणा तुम
अभिमान त नि करा भै !
जू भी मनखि आज इतिहास बणै गै
वे मनखि तुम इतिहास पढ़ा भै
पुंगणि पुंगणि, बाटा-बाटा ख़ैरि खाई
वू तै पूछा कै का बाटा कनिकै ग्याई
नौन्यावा छौरों पर दिमाग त भौत च
दिमाग भी खपाणा, क्वी बिष्ट क्वी रौत च
मगर तुम किले छा भटकना इनि
रौल-धौल मा किलै छा लटकना इनि
भुलौं टक लगै कि सूणा तुम
अभिमान त नि करा भै!
क्वी डांसर बनणु बणा, क्वी बनणु सिंगर बणा
एका ख़ातिर तुम रातदिन एक छा कना, करा
पद अर प्रतिष्टि मिल जाणू बाद….
तुम अपुणु आधार किलै छौं भूलणा, किले छौं भूलणा
गौंका छ्वारा नौकरी वास्ता भैर जाणदिन
दिली, द्यरदूंण अर चंडीगढ़ रैंदिन
चार-बाई-छै वालू कमरों मा कटदिन सबकी रात
गौं जाके दिखौणा रैंदिन अपणि-अपणि औकात
भुलौं टक लगै कि सूणा तुम
अभिमान त नि करा भै!
लिखणु त छू सच्ची बात तै मैं
नि छौं द्यूणु( द्द्योणु) तुमतै आघात मैं..
तुम करा, तुम बढ़ा और सूणा भै
शैर जा कै अपणु ईमान न भूल्या भै
सीख ल्या उनसे सीख भी कुछ
न्यौछावर करि गी जू पहाड़ों खू सबकुछ
लटकैकि-झटकैकि काम नि चलदु
सोचल्या ए-बातों तै, मि फिर नि मिल्दु
भुलौं टक लगै कि सूणा तुम
अभिमान त नि करा भै!
✍️रचनाकार- बृजपाल रावत
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