भुलाया न गया
दर्द ऐसा था के भूले से भुलाया न गया ।
मुस्कान चेहरे पर फिर से लाया न गया।
दर्द क्या चीज है ये पूछो न हमसे ,
आईने को भी चेहरा दिखाया न गया।
दर्द ऐसा था के भूले से भुलाया न गया।
झूठ की बुनियाद पर खड़े थे कभी।
इसी दरो – दीवार पर अड़े थे कभी।
जिसे बनाया उसे हमसे गिराया न गया।
दर्द ऐसा था के भूले से भुलाया न गया।
ये तरीका भी कितना असरदार रहा।
मेरी हर बात पर बस ख़बरदार रहा।
खुद को गम के साथ सुलाया न गया।
दर्द ऐसा था के भूले से भुलाया न गया।
दिन सूने थे और ये रातें नम थीं।
तकरार ज्यादा था बातें कम थीं।
दिन हो या रात पर मुस्कुराया न गया।
दर्द ऐसा था के भूले से भुलाया न गया।
-सिद्धार्थ गोरखपुरी