भुलक्कड़ इंद्र देव ( हास्य व्यंग कविता)
बेवजह बेमौसम बरस रहे हो इंद्रदेव !
कहो ! किन ख्यालों में गुम थे ।
अचानक अपनी ड्यूटी याद आ गई ,
और ओवर टाइम करने निकल पड़े ।
यह भी न सोचा की गरीब किसानों का क्या होगा,
उनके धन धान्य का नुकसान होगा कितना ,
बस ! मन ने चाहा जब आकर बरस पड़े ।
सरकार के विकास की तो बेशक पोल खोल दी ,
सारे शहर को तालाब जैसा तुम बनाने लग पड़े ।
अब ! बताओ तो सही कहां अब तक गुम थे ,
जो एक दम से इंद्राणी के पहलू से जागकर ,
लपक कर तुम बरस पड़े ।