भुने बीज से पेड़ न उगता
भुने बीज से पेड़ न उगता, बीज स्वयं मिट जाता है।
कर्म नष्ट होते ज्ञानी के, वह न कर्मफल पाता है।।
जैसे कमलपत्र पर पानी, पाता है ठहराव नहीं।
ज्ञानवान के कर्मों का भी, होता कहीं जमाव नहीं।।
जान ब्रह्म को लेता है जो, उसे न पाप सताता है।
कर्म नष्ट होते ज्ञानी के, वह न कर्मफल पाता है।।
ज्ञानवान अपने कर्मों का, भार न शिर पर ढोता है।
कर्मों का क्षय हो जाने पर, प्राप्त परम पद होता है।।
ब्रह्मवेत्ता मायापति बन, निज भूमिका निभाता है।
कर्म नष्ट होते ज्ञानी के, वह न कर्मफल पाता है।।
सृष्टि ब्रह्म की ज्ञानवान को, आत्मसात जब कर लेती।
वह अलिप्त रहता कर्मों से, विद्या मुक्ति उसे देती।।
कर्मपाश के सभी तन्तु वह, तोड़ मुदित मन गाता है।
कर्म नष्ट होते ज्ञानी के, वह न कर्मफल पाता है।।
कर्मों में आसक्ति न रहती, कर्म न जब बनते बाधा।
भिन्न न उसे दिखाई देते, सीता-राम, कृष्ण-राधा।।
आत्मतत्व को ब्रह्मलीन कर, ज्ञानी बनता ज्ञाता है।
कर्म नष्ट होते ज्ञानी के, वह न कर्मफल पाता है।।
महेश चन्द्र त्रिपाठी