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7 Jan 2022 · 1 min read

भीड़ में अकेला

**** भीड़ में अकेला ****
*********************

जीवन अब मंहगा सफर है,
बाकी कोई नहीं कसर हैं।

कोई राजी न देख कर मन,
रग में दिखता भरा जहर है।

वास्ता दे भूलते जहां में,
हर मुश्किल से भरी डगर है।

धोखा मिलता रहे कदम पर,
विष में लिपटी हुई नज़र है।

सोखाई मारती फ़सल को,
सूखी पानी बिना नहर है।

मनसीरत भीड़ में अकेला,
सूना लगता मुझे शहर है।
*********************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

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