भीम षोडशी
एक दिवस जब करिवरपुर में, बैठे धर्मराज सजधज
तभी लिए एक अरज पत्रिका, आए मिलने उनसे द्विज (१)
बोले स्वामी अति गरीब मैं, कोई दान मुझे दीजे
आप चक्रवर्ती सम्राट युधिष्ठिर नाथ कृपा कीजे (२)
बोले राजन व्यस्त अति मैं, इस क्षण द्विजवर आना कल
कर दूंगा मैं हर संभव सहायता, समय नहीं इस पल (३)
भीम खड़े थे पास में उनके हुआ गज़ब विस्मय उनको
आज तो अहो भाग्य मेरे जो देख रहा हूँ इस क्षण को (४)
तभी द्वार पर जाके दुंदुभि बाजन लागे अति प्रबल
देख दृष्टता सबने सोचा मारी गयी क्या इसकी अकल (५)
महाबली तो कभी अशिष्टता राजसभा में नहीं करते
ये कैसे अंदाज़ अनोखे आज नयन से हमें दिखते (६)
द्रुपदकुमारी बोलीं स्वामी क्यों मज़ाक उड़वाते हो
बल के साथ आप बुद्धि में भी अनुपम कहलाते हो (७)
बोले बिहसे भीम सुनो प्रिय पटरानी इस कुरुकुल की
आज तो भैया प्यारे ने तेरी भरी मांग अटल करदी (८)
समझ सकीं ना भोली द्रौपदी व्यंग प्रभंजन जाए का
किस आमोद में मगन महाबली और आनन्द है काहे का (९)
पुनि बोले सुनो मखसैनी जो भी जन्मा इस धरती पर
एक न एक दिन जाना ही पड़ता उसको त्यजकर यह घर (१०)
मैं भी तुम भी ये सभ भाई माता बंधू सभी सकल
जाएंगे उस परमधाम को मृत्यु सबकी सदा अटल (११)
केवल भ्राता धर्मराज ही चिरजीवी कहलाएंगे
क्यूंकि उनके जीवन में हैं स्पष्ट पता कल आएंगे (१२)
मैं तो केशव की गीता का सार यही अपनाता हूँ
आज को आज ही जीकर के मृत्यु के लिए सो जाता हूँ (१३)
कल क्या जाने किसे दिखे और किसे दिखे ना किसे पता
भ्राता मेरे कालजयी और काल की चाल है इन्हें पता (१४)
सुनकर धर्मराज भी सकुचे क्षुब्ध हुए लिए सचिव बुला
उसी समय धन धान्य दान कर द्विजवर सादर किये बिदा (१५)
बोले प्रियवर अनुज तुम्हारे ज्ञान को कोई सानी नहीं
मैं अज्ञानी “जड़मति” देखो जिसने कैसी बात कही!!
मैं अज्ञानी “जड़मति” देखो जिसने कैसी बात कही!! (१६)