* भीतर से रंगीन, शिष्टता ऊपर से पर लादी【हिंदी गजल/ गीति
* भीतर से रंगीन, शिष्टता ऊपर से पर लादी【हिंदी गजल/ गीतिका】*
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(1)
भीतर से रंगीन , शिष्टता ऊपर से पर लादी
हमको लगती सबसे अच्छी ,नेताओं की खादी
(2)
पत्नी सिर के बाल नोंचती ,घर की है बर्बादी
साठ साल में अक्सर करते, पुरुष दूसरी शादी
(3)
लुटे-पिटे से नजर आ रहे ,रोज कचहरी जाते
बच्चे थे पहले अब बूढ़े, हैं वादी – प्रतिवादी
(4)
मुख का कैंसर-रोग हो गया ,लाइलाज कहलाता
बड़ी शान से खाने के , तंबाकू थे जो आदी
(5)
होटल पाँच सितारा में दी ,दावत कर्जा लेकर
हेय मानते जीवन-शैली, कुछ जन सीधी-सादी
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हेय = तुच्छ, गिरी हुई
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451