भीड़ में तनहा
भीड़ में तनहा कब ,पल्लवित और पुष्पित हो गयाl
एक जर्रा इस कदर, फैला की दुनिया हो गया ll
मन मेरा था मैला आंचल, जब आया तेरे हाथl
गौर से देखे दुनिया ,सुर्खरू यह हो गयाll
तोड़कर दुनिया के बंधन ,आओ बसाए एक जहां l
आज वह पावन धरा, मैं नीलांबर हो गया ll
देख अब न दोष कोई ,पाप में या पुण्य मेंl
गंगाजल बन आज प्रियतम ,मैं समंदर हो गया ll
सुख दुख सारे आज, आओ अपने मेंही बाटलेl
सरहदें तो है वहीं ,नाहक बवंडर हो गयाll
आंधियां क्या रोग देंगी ,आज मेरा कारवां l
जिस रास्ते पर पाव रखे ,वही मंजिल हो गया ll
संजय सिंह “सलिल”
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश