*”भीगी पलकें क्यों छुपा रहे हो”*
“भींगी पलकें क्यों छुपा रहे हो”
नजरों से नजरें जब मिल गई ,
जुबां से कुछ ना बोल रहे हो।
कुछ ना कहते फिर भी जाने क्यों ,
क्यों इतना मुस्करा रहे हो ,
भींगी पलकें छुपा रहे हो…!!
चाहे गमों का दौर से गुजर रहे हो ,
ख्वाहिशों को अपनी दबा रहे हो ,
बड़ी चुनौती से गुजरे जमाने से ,
फिर भी प्रेम से रिश्ते निभा रहे हो
भींगी पलकें छुपा रहे हो…!!
जुबां पे कुछ चेहरे पे कुछ हो ,
दर्द पीकर भी फर्ज निभा रहे हो ,
अपनों को ही समझा रहे हो ,
नैनों में आँसू पी *भींगी पलकें छुपा रहे हो…!
हर बात अदब से कैसे रिश्ते निभा रहे हो ,
सब कुछ सहकर भी फरिश्ते से नजर आ रहे हो ,
आखिर क्यों एक दूसरे की आरजू को दिल से निभा रहे हो।
शशिकला व्यास शिल्पी✍️