भीगी पलकें( कविता)
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भीगी पलकें*
कभी कभी नम आंखे
भीगी सी पलके भी
बहुत कुछ कह जाती है
कुछ अनकहे जज्बात
कुछ दबे दबे एहसास
ना जाने कितने अनगिनत दर्द
ये नम आंखे समा लेती है अपने अंदर
इन आंखों के अंदर
न जाने छुपे है कितने दर्द
कितनी ही दर्द भरी दास्तां छुपी है
मगर कुछ न बोलते हुए भी
बहुत कुछ कह जाती है
कितना अथाह समुद्र दर्द का
लिए बैठी है ये
कोई समझ ना पता कोई जान न पता
दर्द कभी जुबा से बह भी जाए
मगर ये खामोशी से
एहसास दर्द के पीते है
की दर्द में भी खामोश
रहती है ये भीगी पलकें
कभी कभी नम आंखे
बहुत कुछ कह जाती हैं
अपने दिल के दर्द को देखकर भी
कुछ न कह पाती ये
अपनी आती जाती सासो को सुनकर
ना हिम्मत जुटा पाते है
अपनी बेबसी को ना बता पाते हैं
बस तड़पते है ये
दिल की गहराई से
चुपके से पलके भिगो लेते है ये
कभी कभी नम आंखे भी
बहुत कुछ कह जाती हैं