” भींगता बस मैं रहा “
गीत
प्रीत में तुमने भिगोया ,
भीगता बस में रहा !!
पास आकर बैठते तुम ,
मोहनी छवि को लिए !
मौन अपलक देखता मैं ,
होंठ अपने सी लिए !
श्वांस क्या धड़कन कहे यह ,
संग लहरों के बहा !!
प्रीत में तुमने भिगोया ,
भीगता बस में रहा !!
ज्वार मन में उठ रहे हों ,
टूटते से बंध हैं !
मौन अधरों पर ठहरता ,
इक अजब सा द्वंद है !
दी मदिर सी जब छुअन है ,
है किला मन का ढहा !!
प्रीत में तुमने भिगोया ,
भीगता बस में रहा !!
गंध चंदन देह की जो ,
रोम पुलकित कर गई !
रूप की छलकी गगरिया ,
धैर्य की गति हर गई !
इंद्रधनुषी रंग बिखरे ,
मोहती छबि वह अहा !!
प्रीत में तुमने भिगोया ,
भीगता बस में रहा !!
है प्रणय का क्या खूब जाना ,
जो रचा तन मन बसा !
साधना तुम समय जानो ,
बंध ऐसा है कसा !
हो गए पल हैं सुहाने ,
आज सुधियों ने कहा !!
प्रीत में तुमने भिगोया ,
भीगता बस में रहा !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्य प्रदेश )