भाष्कर
मैं कवि हूँ
कल्पना ही मेरा जीवन
सोचता हूँ
मैं जो होता
नीले अम्बर पर चमकता और दमकता “भाष्कर”
मेरी पहली रश्मियों की
तेज से
जागता अधखिला धरती का यह सोया स्वरूप्
और अलसाई हुई मुद्राओं को
त्याग कर डोलतीं
यह डालियाँ जो वृक्ष की
कोयलों की कूक से गूँजते
आम जामुन और यह महुआ के वन
धीरे धीरे फैल जाती गांव में
पुष्प गन्धित वायु से पूरित पवन
*****
सरफ़राज़ अहमद “आसी”