भाषा
सजदे में भी सौगातों की बात हर शाम होती है
इश्क इवादत था कभी अब बात आम होती है
अधरों से गिरे थे कभी जो फूल गालों पर
लफ्जो में मोती की कभी बरसात होती थी
सब बिक रहा देखो बोली नीलाम होती है
मीठी छुअन एहसास हो ख़ास होता था
बाहों में आने का मतलब पास होता था
आलिंगन की शर्त अब सरे आम होती है
आँखों में जो पर्दा कभी हया का गिरता था
देखकर महबूब को जो पलको से झरता था
नैनों की वो मूक भाषा अब बदनाम होती है