Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
29 Aug 2020 · 4 min read

भाषा का बोझ

गांव की राजस्थान क्लब के सदस्यों द्वारा कुछ दिनों बाद एक नाटक का मंचन होना था।

ये क्लब हिंदी भाषियों की सांस्कृतिक गोष्ठी की जगह थी उस समय।
क्लब का पुस्तकालय भी समृद्ध था। हिंदी साहित्य की पुस्तकों और लगभग सभी मासिक पत्रिकाओं की एक मात्र संग्राहक भी थी।

रिहर्सल के समय, अमर भाई भी आ टपके। कुछ देर गौर से साथियों का अभिनय देख कर उनके अंदर के कलाकार ने भी अंगड़ाई लेनी शुरू कर दी।

रिहर्सल खत्म होते ही, निर्देशक से जिद कर बैठे कि, उन्हें भी किसी चरित्र में खपा दें। निर्देशक के आना कानी करने पर हलवाई की दुकान से चाय और समोसे का प्रलोभन दे बैठे।

ये सुनकर निर्देशक महोदय के दिमाग की बत्ती जल उठी, शाम के वक्त मुफ्त के चाय और समोसे की पेशकश कौन ठुकराता भला ?

बोले, कल शाम को आना, एक छोटा सा रोल है तुम्हारे लिए,
ये कहकर, उनका हाथ पकड़ कर हलवाई की दुकान की ओर तेजी से चल पड़े ,कि अमर भाई छोटा रोल सुनकर कहीं अपना मन न बदल दें।

रास्ते में निर्देशक बोलते भी जा रहे थे ,चरित्र छोटा हो या बड़ा इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता, बस उसको अच्छी तरह से निभाना जरूरी है, फिर दर्शकों से तालियाँ लेना कोई बड़ी बात नहीं है।

चाय और समोसा पेट में जाते ही ये गुंजाइश भी तलाशी जाने लगी कि अगर कोई कलाकार लगातार रिहर्सल के समय अनुपस्थित रहा तो अमर भाई बड़ा रोल भी पा सकते है, पर इसके लिए उन्हें रोज आना होगा,

रिहर्सल पर भी और उसके बाद हलवाई की दुकान पर भी!!!

अमर भाई आश्ववस्त होकर लौट गए।

दूसरे दिन रिहर्सल पर पहुँचे तो निर्देशक ने कहा, आप इस नाटक में एक चश्मदीद गवाह की भूमिका में हैं, पुलिस जब मुजरिम की पहचान के लिए बुलायेगी, तब आपको मुजरिम को देख कर बस इतना ही कहना है कि,

“ये वही आदमी है साहब”

अमर भाई ने हाँ मे सर हिला दिया।

जैसे ही मुजरिम को लाया गया, अमर भाई अपनी बुलंद आवाज़ में बोल पड़े,

“ए ओही आदमी है साहब”

निर्देशक की लाख कोशिश उनसे ‘ये वही” नहीं बुलवा सकी

ज्यादा बोलने पर खीज कर बोल पड़ते कि “हम भी तो ओही बोल रहे हैं”

निर्देशक ने फिर ये सोच कर संतोष किया कि गवाह कोई देहाती भी तो हो सकता है जिसकी जुबान ही ऐसी हो।

शाम को फिर चाय समोसे जो खाने थे, साथ ही अमर भाई को अभिनय की बारीकियां भी समझानी थी।

बहुत सालों बाद जब भाईसाहब ने इस घटना का जिक्र किया तो उनके साथ मैं भी हंस पड़ा।

अचानक एक और घटना दिमाग मे कौंध गयी।

जब मैं सात या आठ वर्ष का था , एक बार अपने ननिहाल गया था।
वहाँ सब सुसंस्कृत थे और हिंदी में ही बात किया करते थे।

चौके में अपनी छोटी बहन को लेकर खाना खाने गया, मेरी एक भाभी जी जो कानपुर की थी, खाना परोस रही थी, उनको देख कर मैं अपनी छोटी बहन की ओर इशारा करके मारवाड़ी में बोल पड़ा,

“या मेरी छोटी भैन ह”
(ये मेरी छोटी बहन है)

मेरी भाषा सुनकर वो हंस पड़ी, वो मुझसे हिंदी भाषा की अपेक्षा में थीं शायद।

पर मुझे तो उस वक़्त सिर्फ ये भाषा ही आती थी,जिसमे मैं अपने भाव व्यक्त कर सकता था।

इसी तरह कमरे को मैं “कोठड़ी” कहता था।

इस बात का जिक्र वहाँ बहुत दिनों तक हंसी मजाक मे होता रहा।

मुझे लगा कि ये कोई पिछड़ेपन की निशानी है। कुंठा भी महसूस हुई कभी कभी।

बड़े मामाजी नामवर वकील थे , हिंदी, अंग्रेजी और अन्य कई विषयों पर गहरी पकड़ रखते थे,

एक बार मेरी ममेरी बहन की कॉपी में पानी गिरने पर बोल पड़े,

” इस कॉपी में लिखे अक्षर तो भुजण(मिट) गए”

मेरी वाचाल ममेरी बहन तुरंत बोल पड़ी, पिताजी आप तो हिंदी में मारवाड़ी शब्द मिला बैठे,

मेरे गंभीर मामाजी भी मुस्कुराए बगैर न रह सके।

खैर, मुझ पर मेरे शब्दों और भाषा का बोझ लंबे अरसे तक रहा।

हिंदी और अन्य भाषायें बोलने वालों पर, देश की अंग्रेज़ी भी इसी तरह उपहास करती आ रही है अब तक।

अन्य भाषायें भी एक दूसरे को कभी कभी अजनबी मान ही लेती हैं।

कोरोना के समय, हाल ही में, एक आंग्ल भारतीय पत्रकार कोलकाता के चांदनी चौक इलाके में एक मजदूर से पूछ बैठा,

” टुम मास्क नई पैना”

मजदूर इस नागवार प्रश्न से, अपनी ठेठ भाषा मे गालियां बकता रहा , उसे इंग्लैंड जाने तक का मशवरा भी दे दिया।

पत्रकार उसे समझाता रहा कि वो यहीं पैदा हुआ है, पर उसकी एक भी नहीं सुनी गई, गालियां बदस्तूर जारी रही।

पत्रकार पर भी तो दो सौ वर्षों के अंग्रेजों के शासन और भाषा का बोझ था!!!

Language: Hindi
6 Likes · 6 Comments · 646 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Umesh Kumar Sharma
View all
You may also like:
*करता है मस्तिष्क ही, जग में सारे काम (कुंडलिया)*
*करता है मस्तिष्क ही, जग में सारे काम (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
थोड़ा राज बनकर रहना जरूरी हो गया है दोस्त,
थोड़ा राज बनकर रहना जरूरी हो गया है दोस्त,
P S Dhami
..
..
*प्रणय*
जय हो जय हो महादेव
जय हो जय हो महादेव
Arghyadeep Chakraborty
‘लोक कवि रामचरन गुप्त’ के 6 यथार्थवादी ‘लोकगीत’
‘लोक कवि रामचरन गुप्त’ के 6 यथार्थवादी ‘लोकगीत’
कवि रमेशराज
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
I Fall In Love
I Fall In Love
Vedha Singh
💪         नाम है भगत सिंह
💪 नाम है भगत सिंह
Sunny kumar kabira
स्मृतियाँ
स्मृतियाँ
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
माँ में मिला गुरुत्व ही सांसों के अनंत विस्तार के व्यापक स्त
माँ में मिला गुरुत्व ही सांसों के अनंत विस्तार के व्यापक स्त
©️ दामिनी नारायण सिंह
"दर्द की दास्तान"
Dr. Kishan tandon kranti
यादों से निकला एक पल
यादों से निकला एक पल
Meera Thakur
"प्यासा"-हुनर
Vijay kumar Pandey
संवेदना
संवेदना
Ekta chitrangini
प्रद्त छन्द- वासन्ती (मापनीयुक्त वर्णिक) वर्णिक मापनी- गागागा गागाल, ललल गागागा गागा। (14 वर्ण) अंकावली- 222 221, 111 222 22. पिंगल सूत्र- मगण तगण नगण मगण गुरु गुरु।
प्रद्त छन्द- वासन्ती (मापनीयुक्त वर्णिक) वर्णिक मापनी- गागागा गागाल, ललल गागागा गागा। (14 वर्ण) अंकावली- 222 221, 111 222 22. पिंगल सूत्र- मगण तगण नगण मगण गुरु गुरु।
Neelam Sharma
नारी भाव
नारी भाव
Dr. Vaishali Verma
भूलना
भूलना
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
ये जो मुहब्बत लुका छिपी की नहीं निभेगी तुम्हारी मुझसे।
ये जो मुहब्बत लुका छिपी की नहीं निभेगी तुम्हारी मुझसे।
सत्य कुमार प्रेमी
सारंग-कुंडलियाँ की समीक्षा
सारंग-कुंडलियाँ की समीक्षा
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
अपने एहसास
अपने एहसास
Dr fauzia Naseem shad
पात कब तक झरेंगें
पात कब तक झरेंगें
Shweta Soni
अगर मैं अपनी बात कहूँ
अगर मैं अपनी बात कहूँ
ruby kumari
बहुत
बहुत
sushil sarna
मुझसे नाराज़ कभी तू , होना नहीं
मुझसे नाराज़ कभी तू , होना नहीं
gurudeenverma198
3757.💐 *पूर्णिका* 💐
3757.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
ख्याल (कविता)
ख्याल (कविता)
Monika Yadav (Rachina)
मेरा स्वर्ग
मेरा स्वर्ग
Dr.Priya Soni Khare
गलतियां वहीं तक करना
गलतियां वहीं तक करना
Sonam Puneet Dubey
!! पर्यावरणीय पहल !!
!! पर्यावरणीय पहल !!
Jeewan Singh 'जीवनसवारो'
बदला है
बदला है
इंजी. संजय श्रीवास्तव
Loading...