भाव
मैं अपना कर्म करता हू,
अपना धर्म करता हू।
बात जब गिर के उठने की हो ,
तो ना मै शर्म करता हूँ ।।
लोग तन के उजले,
मन के काले होते है,
भाव रहित है दुनिया,
भावो पर उनके ताले होते हैं ।।
मकड़ियो की फितरत है
जाल बनाने की,
अब उनका यह हुनर
इन्सान ने ले लिया।
सिखाती रही जिन्दगी कुछ न कुछ
अब हमने भी जायका
अनुभव का के लिया।।