** भाव भाषा का **
भाव भाषा का समझते हैं हम तभी
जब माँ की तरह प्यारी हो मातृभाषा
मात प्यारी है तात् जिस तरह हमारी
प्यारी हो मातृभाषा भी हमें हमारी
निज भाषा का गौरव होना चाहिए
वरना यह संसार रौरव से कम नहीं
हिंदी में बिंदी का उतना ही महत्त्व है
जितना नारी के माथे की बिंदी का है
बन्धन तोड़े टूटे नहीं राखी का कभी
ऐसा बन्धन हो हिन्द- हिंदी का कभी
मात्र मातृभाषा दिवस मनाना ही नहीं
आचरण में उतारना भी जरूरी है
पता नहीं क्या हमारी मजबूरी है
मातृभाषा राजभाषा में क्यों दूरी है
तुलस ने जिसे बनाया आम भाषा
बन न पायी आज राज-काज भाषा
सोचो आज विचारणीय प्रश्न है ये
रोज आते और जाते रहे हैं दिवस ये ।।
?मधुप बैरागी