भावशून्य आंखें
भावशून्य आंखें
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आज फिर मैं उसी रास्ते गुजरा ,फिर वही सूनी आँखें और उन आँखों में शायद किसी का बेसब्री से इंतज़ार….?
शहर के बाहरी हिस्से में बना एक आलीशान महल सरीखा वह घर जो पिछले कुछ वर्षों से बिना रंगाई पुताई किसी भुतहा महल जैसा दिखने लगा था …….प्रति दिन कार्यालय आते जाते उस मकान की खिड़की पर मेरी नजर जाती और हर दिन एक दृश्य देखने को मिलता ……एक बुजुर्ग जिनकी उम्र शायद ६० या ६५ की रही होगी किन्तु समय के क्रूरता के कारण अब देखने में ७५/८० के लगने लगे थे …….एकटक उनकी नजरे उस रास्ते को निहारतीं दिख जातीं , शायद वर्षों से किसी के आने का इंतजार हो।
वैसे उन सूनी आँखों की अस्पष्ट अभिव्यक्ति पढ पाने में मै खुद को असमर्थ पा रहा था ।
भाव शून्य आँखे, भावना विहीन मलिन चेहरा पढूं तो आखिर कैसे …
आँखों की भाषा पढ़ पाना सबके लिए मुमकिन नहीं।
किन्तु अब मेरे मन की जिज्ञासा नित्य दिन ही बढने लगी यह जानने को कि आखिर वो किसका इंतजार कर रहे हैं, किसकी बाट जोह रहे है?… क्योंकर इतना बड़े भवन में कोई चहलकदमी नहीं..?
मेरी हार्दिक उत्कंठा चरम को स्पर्श कर रही थी कि आखिर उन वृद्ध आंखों को किसका इंतजार है..?
एक दिन मैं काम नहीं जाकर सुबह सुबह वहाँ पहुंच गया कि घर के अगल बगल कोई गतिविधि हो कोई दिखे तो पूछूं ।
लगभग आधा दिन बीत गया खिड़की पर वही चेहरा एक जैसी ही भावशून्यता….. आंखों में वही सूनापन……
लगभग तीसरे पहर में एक आदमी वहाँ दिखा मैं आतुरता बस खुद को रोक न सका उनसे पूछ बैठा।
जो उन महानुभाव ने बताया सुनकर कानों पे विश्वास नहीं हुआ ।
ये वृद्ध इस शहर के जाने माने धनाढ्य एवं शिक्षाविद श्री जानकी प्रसाद जी हैं ……एक ही लड़का था इनका जिसे ये दिलोजान से चाहते थे, उसने अपना व्यवसाय अमेरिका में जमा लिया आज तकरीबन बारह वर्ष हो गये वो आया नहीं।…….
पिछले वर्ष जानकी प्रसाद जी के देहावसान पर भी वो नहीं आया
मरने से पहले भी जानकी प्रसाद जी इसी खिड़की से रास्ते पर नजर गड़ाये बेटे का इंतजार करते रहे….. और अब मरणोपरांत भी…….
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पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार