भारत
मैं अकेली नहीं थी
चल रहे थे
विचार मेरे साथ
गणित, भूगोल, दर्शन
बतिया रहे थे मुझसे
संगीत, नृत्य मिल रहे थे मुझसे
बैठ जाओ
यहाँ सड़क के किनारे
इतिहास के पन्नों से निकल कहा किसी ने
जानना चाहते हो इस मिट्टी का इतिहास
तो एकरस हो जाओ इस भीड़ में
फुसफुसाया उस बुजुर्ग ने
यही किया है तुम्हारे पुरखों ने
क्षणभंगुर जीवन में
एकरस हो ब्रह्मांड से
पाया है सारा ज्ञान
जो आज भी बिखरा है चप्पे चप्पे पर
मत ढूँढो इसे
सरकारी आँकड़ों में
यह है , यहाँ की जीवन पद्धति में
आँगन की तुलसी में
ब्राह्मण की भिक्षा में
विधार्थी के तप में
गुरू के परिश्रम में
निर्धन के दान में
नारी के निर्णय में
पुरूष की सहभागिता में
गाँवों के मेले में
यहाँ है पूरा ब्रह्मांड तुम्हारे साथ
फिर ईश्वर उससे परे कहाँ जायेगा
उसे पा लेना
अपने मन की ख़ुशी में , चैन में, अबाधित स्नेह में
यह भारत है
जो है अपना तुम्हारा
पुरखों की विरासत
आने वालों की धरोहर ।
शशि महाजन-लेखिका