भारत वर्ष (शक्ति छन्द)
यह सृजन है नाथ भारतवर्ष के भूगोल का
मानचित्रों से इतर निर्जीवता के बोल का
सीप में मोती पले औ स्वर्ण सम सब रेत हैं
अन्नपूर्णा सी जहाँ सोना उगलते खेत हैं
दृश्य हैं बहुरंग जिसके पर अखंडित एकता
विविधता में भी कई दिखती जहाँ है साम्यता
भाल जिसका है हिमालय औ तिरंगा शान है
देश प्यारा वह हमारा नाम हिन्दुस्तान है
हर सुबह जिसकी सुहानी सुरमई औ’ शाम है
स्वर्ग सा यह देश अपना मोक्ष का यह धाम है
खेत गिरि मैदान जंगल लहकतीं हरियालियाँ
भोर की आहट मिले तो स्वर्ग सी हो वादियाँ
पूर्व में आसाम मेघालय मिजोरम ख़ास है
साथ में बंगाल सिक्किम का अमर इतिहास है
गन्ध फूलों की बिखरती है हवाओं में वहाँ
गीत गाते खग ख़ुशी के आसमानों में जहाँ
भोर की परिधान में कण – कण सजी माँ वारती
थाल किरणों का सजाकर सूर्य करता आरती
राज्य पश्चिम में बसे गुजरात राजस्थान हैं
साथ में पंजाब हरियाणा हिमाचल जान हैं
बात दक्षिण की करें तो केरला कर्नाटका
पुड्डुचेरी तेलंँगाना मन लुभाता आपका
मध्य भारत ओडिशा छत्तीसगढ़ उद्यान हैं
दादरा गोवा महाराष्ट्रा तमिल अभिमान हैं
सोन गंडक रामगंगा बेतवा औ नर्मदा
घाघरा कोसी महानन्दा नदी है शारदा
व्यास सतलुज सिन्धु रावी और है गंगा नदी
कुछ सदानीरा यहाँ हैं कुछ यहाँ है सरहदी
पर्वतों से वो निकल कर सींचती मैदान को
साथ ही अक्षुण्य रखती देश की पहचान को
नीलगिरि कैलाश कंचन रायसीना सतपुड़ा
विंध्य औ लद्दाख धौला गॉडविन भी है जुड़ा
पीर नंगा गुरु शिखर माउण्ट औ कामेत भी
है अमर कंटक अजंता साथ में साकेत भी
सब अटल होके खड़े इस छोर से उस छोर तक
है रचें इतिहास सबने सरहदों के कोर तक
नाथ सोनांचली