भारत मेरा महान् (देशगान)
उन्नत भाल हिमालय सुरसरि, गंगा जिसकी आन।
उन्मुक्त तिरंगा शान्ति-दूत बन, देता है संज्ञान।
चक्र सुदर्शन सा लहराए, करता है गुणगान।
चहूँ दिशा पहुँचेगी मेरे, भारत की पहचान।।
महाभारत, रामायण्ा, गीता, जन-गण-मन सा गान।
ताजमहल भी बना मेरे, भारत का अमिट निशान।
महिला शक्त्िा बन उभरीं, महामहिम भारत की शान।
अद्वितीय, अजेय, अनूठा ही है, भारत मेरा महान्।
यह वो देश है जहाँँ से दुनिया ने, शून्य को जाना।
खेल, पर्यटन और फिल्मों से, है जिसको पहचाना।
अंतरिक्ष पहुँच और तकनीकी, प्रतिभाओं से विश्व भी माना।
बिना रक्त क्रांति के जिसने, पहना स्वाधीनी बाना।
भाषा का सिरमौर, सभ्यता, संस्कार, सम्मान।
न्याय और आतिथ्य हैं मेरे, भाारत के परिधान।
विज्ञान, ज्ञान, संगीत मिला, आध्यात्म गुरू का मान।
ऐसे भारत को ‘आकुल’ का, शत-शत बार प्रणाम।।
(मेरेे काव्य संग्रह ‘जीवन की गूँज’ से)