भारत में कोरोना
मनु नहीं मनुपुत्र तू, तेरे मन की न हार है |
माना ये अदमें मौसम, प्रतिकूल अपार है ||
मानव पर आज ‘कोरोना’ लिए दानवातार है |
अदृश्य शत्रु यह मानव का,करता छिपकर वार है ||
सहज समझने से पहले, मन में गुनो विदेशी हाल है |
मनु समाज पर तांडव करता, रूप इसका विकराल है ||
निज आलय पैठ बना मानव से दूरी, ही इसका प्रतिकार है |
मनु नहीं मनुपुत्र तू, तेरे मन की न हार है ||
मानव सेवा ही मानव का, सच्चा धर्म अपार है |
हर समय एकसा नहीं रहेगा, यही सत्य का सार है ||
प्रभु ने दिया परसेवा का, यह अवसर अपरंपार है |
ले संकल्प जनसेवा का, यह मानवता का व्यवहार है ||
ध्यान रहे बस इतना, भूखा न सोने पाए इंसा या परिवार है |
‘सुमित’ मातृभूमि हेतु परसेवा कर, वर्ना जीवन ये बेकार है ||
निश्चित ही विजय हमारी होगी, जन-जन की यही पुकार है |
मनु नहीं मनुपुत्र तू, तेरे मन की न हार है |…
पं. कृष्ण कुमार शर्मा “सुमित”